जब पूरी दुनिया ओवर टूरिज्म की समस्या से निजात पाने के उपाय ढूंढ रही है, तब भारत दुनिया भर के पर्यटकों को पधारो म्हारे देश के स्लोगन के साथ बुलाने के बड़े-बड़े विज्ञापन अभियान चला रहा है। साथ ही पर्यटन इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट के नाम पर पर्यावरण की अनदेखी को भी बढ़ावा दे रहा है। नतीजा, देश के तमाम स्मारक, धरोहर, जंगल, बाघ समेत जंगली जानवर पर्यटकों की भीड़ से कराह रहे हैं। देश की सड़कों पर पर्यटक वाहनों की रेलमपेल के साथ-साथ उनके रहने-खाने की व्यवस्था से उत्पन्न प्रदूषण देश के कार्बन फुटप्रिंट में बेतहाशा वृद्धि कर रहा है। जबकि पर्यटन से पर्यावरणीय क्षति का वैश्विक आंकड़ा चौंकाने वाला है। 1995 से 2019 तक पर्यटन से कार्बन उत्सर्जन 65 प्रतिशत बढ़ गया। ये वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों का 10 प्रतिशत हिस्सा है।
चूंकि भारत प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक धरोहर और जैव-विविधता के लिए विश्वविख्यात है। हिमालय की बर्फीली चोटियां, राजस्थान के रेगिस्तानी किले, केरल के शांत बैकवाटर और उत्तर-पूर्व के घने जंगल पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। लेकिन अनियंत्रित पर्यटन ने इन अनमोल खजानों को खतरे में डाल दिया है। मनाली, शिमला, ऊटी, गोवा और रणथम्भौर पर्यटकों की भारी भीड़ से बुरी तरह परेशान हैं। भीड़ के चलते पर्यावरण, स्मारक और वन्यजीवों का प्राकृतिक जीवन गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।
हिमालयी क्षेत्र के राज्य हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड देश के सबसे अधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं क्योंकि इनमें धार्मिक आस्था के केन्द्रों के साथ ही ऐतिहासिक विरासत के स्मारक हैं। लेकिन दोनों राज्यों में ओवर टूरिज्म ने नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों को संकट में डाल दिया है। मनाली और शिमला में पर्यटकों की भारी भीड़ से स्थानीय जल संसाधन दबाव में हैं। होटल, रिसॉर्ट और गेस्टहाउस पानी की अंधाधुंध खपत करते हैं। हाल ही मनाली में जल संकट इतना गहरा गया कि कई होटलों को पानी टैंकरों से मंगवाना पड़ा, जबकि स्थानीय निवासियों को पीने के पानी के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ा।
पर्यटक वाहनों से वायु प्रदूषण और ट्रैफिक जाम भी एक बड़ी समस्या है। शिमला की संकरी सड़कों पर पर्यटक वाहनों की भीड़ न केवल हवा को जहरीला बना रही है, बल्कि भूस्खलन के खतरे को भी बढ़ा रही है। अनियोजित निर्माण पहाड़ों की स्थिरता को कमजोर कर रहे हैं। उत्तराखंड में कई भूस्खलनों का कारण पर्यटन से जुड़ा अनियंत्रित निर्माण माना गया। पर्यटकों द्वारा छोड़ा गया प्लास्टिक कचरा उन नदियों और झरनों को प्रदूषित कर रहा है जो हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का आधार हैं।
इसी तरह रणथम्भौर, जिम कॉर्बेट और काजीरंगा में ओवर टूरिज्म बाघ, गैंडा और अन्य वन्यजीवों के प्राकृतिक जीवन को बाधित कर रहा है। रणथम्भौर में पर्यटक जीपों की भीड़ जंगल के भीतर शोर और प्रदूषण बढ़ा रही है। इससे भोजन श्रृंखला के शीर्ष पर रहने वाले बाघ और तेंदुए की पूरी नस्ल खतरे में है क्योंकि वे इंसानी सम्पर्क में आ रहे हैं जबकि उनकी नस्ल को उन्नत बनाए रखने के लिए उन्हें इंसानों से दूर रखना अति आवश्यक है। शोर और मानवीय हस्तक्षेप से उनके शिकार करने की प्राकृतिक प्रक्रिया भी बाधित हो रही है, इससे उनकी प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ रहा है।
हालात कितने विस्फोटक हैं, इसका अंदाजा सिर्फ इससे लगाया जा सकता है कि चालू वर्ष में अभी तक रणथम्भौर में पर्यटकों की संख्या में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होने का अनुमान है। इससे वनस्पति को नुकसान के साथ—साथ छोटे जीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं। काजीरंगा में एक सींग वाले गैंडों की भी यही स्थिति है। पर्यटकों की भीड़ उनके प्राकृतिक व्यवहार को प्रभावित कर रही है। पर्यटक जिस प्लास्टिक कचरे को छोड़ जाते हैं, वह वन्यजीवों के लिए घातक साबित हो रहा है। पिछले साल जिम कॉर्बेट में एक हाथी की मृत्यु का कारण वन्यजीव अधिकारियों ने प्लास्टिक खाना माना गया।
ऐसे ही हालात से ताजमहल, अजंता-एलोरा, खजुराहो और हंपी जूझ रहे हैं। ताजमहल पर पर्यटकों की अनियंत्रित भीड़ का दबाव इतना बढ़ गया है कि इसके संगमरमर की चमक कम हो रही है। उसे प्रदूषण और मानवीय स्पर्श से नुकसान हो रहा है। और हो भी क्यों नहीं, क्योंकि चालू वर्ष में ही आगरा में अभी तक 80 लाख से अधिक पर्यटक आ चुके हैं। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हंपी का भी यही हाल है। अनियंत्रित फोटोग्राफी और ड्रोन उड़ान यहां की प्राचीन संरचनाओं को नुकसान पहुंचा रही हैं। गोवा में पर्यटकों की भीड़ समुद्री प्रदूषण बढ़ा रही है। गंदे पानी को समुद्र में डालने से समुद्री जीवन नष्ट हो रहा है।
देश में पर्यटन से उत्पन्न उत्सर्जन वैश्विक औसत (8-10 प्रतिशत) के करीब पहुंच गया है। हवाई यात्रा, सड़क परिवहन, होटल और रेस्तरां कार्बन फुटप्रिंट बढ़ा रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में डीजल वाहन और होटलों का हीटिंग सिस्टम वायु प्रदूषण को बढ़ा रहा है। शिमला और मसूरी में वायु गुणवत्ता सूचकांक गर्मियों में खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। पर्यटक स्थलों का कचरा नदियों और जंगलों में फैल कर जैव-विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है।
ऐसा नहीं है कि ओवर टूरिज्म भारत में ही समस्या बन रहा है। वैश्विक स्तर पर भी पर्यटन लगभग सभी देशों को परेशान कर रहा है। शायद इसी वजह से विश्व भर के देश ओवर टूरिज्म से निपटने के लिए कड़े कदम उठा रहे हैं। वेनिस ने दिनभर घूमने पर 10 यूरो शुल्क लागू किया है। टेनेरीफे ने ज्वालामुखी चोटी पर रोजाना 300 पर्यटकों को ही जाने की अनुमति दी जा रही है। थाईलैंड ने अपने दो द्वीपों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है।
इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि पर्यटन अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है, रोजगार पैदा करता है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है, लेकिन यह स्थानीय समुदायों, पर्यावरण और पर्यटन स्थलों की व्यवस्था को भी छिन्न-भिन्न कर देता है। लेकिन इसके नुकसान बहुत खतरनाक हैं। इसलिए बेहतर यही होगा कि भारत अपनी अनमोल प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर को ओवर टूरिज्म से बचाए। इसके लिए उसे टूरिज्म इंडस्ट्री पर उसी तरह लगाम लगानी होगी, जैसे दुनिया के अन्य देश लगा रहे हैं। अगर उसने ऐसा नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब भीड़ के दवाब से कराह रहे उसके पहाड़, जंगल, स्मारक और वन्यजीव बीते कल की बात हो जाएंगे।
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