बिहार की राजनीति एक बार फिर हलचल के दौर से गुजर रही है. राज्य में नई सरकार के गठन के बीच बीजेपी ने दावा किया है कि महागठबंधन पूरी तरह टूट की कगार पर है और कई विधायक किसी भी समय एनडीए सरकार का साथ पकड़ सकते हैं.
बीजेपी का कहना है कि विपक्ष में बैठे विधायक अपने राजनीतिक भविष्य और क्षेत्रीय विकास को देखते हुए सत्ता पक्ष का साथ पकड़ने पर विचार कर रहे हैं.
विपक्ष में रहते हुए उन क्षेत्रों में काम करवाना मुश्किल- प्रेम रंजन पटेल
बीजेपी के वरिष्ठ प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि महागठबंधन के कई विधायक अपने क्षेत्र की समस्याओं और विकास की जरूरतों को लेकर गंभीर हैं. विपक्ष में रहते हुए उन क्षेत्रों में काम करवाना मुश्किल है, ऐसे में वे बेहतर विकल्प की तलाश में हैं. उन्होंने कहा कि महागठबंधन के जो विधायक जीतकर आए हैं, उन्हें अपने भविष्य और जनता की अपेक्षाओं की चिंता है. विपक्ष में बैठकर वे अपने इलाके का विकास नहीं कर सकते. जब तक वे सरकार के साथ नहीं जुड़ेंगे, तब तक विकास कार्य संभव नहीं है.
एनडीए से खुद संपर्क कर रहे महागठबंधन के सदस्य- पटेल
पटेल ने यह भी दावा किया कि बीजेपी और एनडीए की सरकार स्थिर है और उनके पास इतना जनसमर्थन है कि महागठबंधन के कई नेता खुद संपर्क कर सहयोग का रास्ता ढूंढ रहे हैं. उनका कहना है कि जनता ने भी महागठबंधन की नीतियों को नकार दिया है और विधायक इसे समझ चुके हैं.
अब महागठबंधन नाम की कोई चीज बची ही नहीं- उपेंद्र कुशवाहा
इसी बीच आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने भी महागठबंधन पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि महागठबंधन नाम की कोई चीज अब बची ही नहीं है. टूट-टूटकर उसमें है ही क्या? किसी भी दिन उधर के लोग इधर आ जाएंगे. कुशवाहा ने स्पष्ट कर दिया कि महागठबंधन की स्थिति बेहद कमजोर है और वहां असंतोष लगातार बढ़ रहा है.
अंदर से खंडित हो चुका है महागठबंधन- कुशवाहा
कुशवाहा के बयान के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा और तेज हो गई है कि बाहरी तौर पर एकजुट दिखने वाला महागठबंधन अंदर से खंडित हो चुका है. कई विधायकों के संपर्क में होने की खबरें पहले से आती रही हैं और अब बीजेपी के दावों के बाद इस संभावित राजनीतिक फेरबदल की आहट और तेज हो गई है.
फिलहाल, महागठबंधन की ओर से इस दावे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन राज्य की राजनीति एक बार फिर बड़े बदलाव की ओर बढ़ती दिख रही है. आने वाले दिनों में राजनीतिक गतिविधियां और भी तेज होने की उम्मीद है और सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या वाकई महागठबंधन में टूट सामने आती है या यह सिर्फ राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है.
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